
1986 में बांध बनने से डूबा यह गांव-

छोटा सा गांव कुर्दी कभी ऊपजाऊ भूमि वाला एक संपन्न स्थान था। यहां लगभग 3 हजार निवासी धान उगाते थे और खुशियों भरा जीवन जीते थे। ईसाई, हिंदू और इस्लाम धर्मों के लोग, यहां एकसाथ रहते थे, जिसमें कई मङ्क्षदर, चर्च और चैपल थीं। जब 1986 में गांव का पहला बांध बनाया गया था, उस साल गांव पानी से भरपूर था और सबकुछ ठीक लग रहा था। लेकिन बांध में जरूरत से ज्यादा पानी भरने से गांव डूब गया और इसने लोगों को दूसरी जगह बसने के लिए मजबूर कर दिया।
(फोटो साभार : TOI.com)
यह है इतिहास-

बांध बनाने का फैसला गांव के पहले मुख्यमंत्री दयानंद बांदोडकर द्वारा लिया गया था। माना जाता है कि दक्षिण गोवा के कुछ हिस्सों में पानी की कमी थी। पीने, सिंचाई और औद्योगिक उद्योगों के लिए यहां 400 मिलियन लीटर पानी की जरूरत पड़ रही थी। उन्होंने गांव का दौरा करने के बाद बांध बनाने का फैसला किया था। बता दें कि दयानंद बांदोडकर महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने गांव वालों को कहा था कि इससे पूरे दक्षिण गांव को फायदा मिलेगा। इस प्रोजेक्ट का नाम सलौलीम सिंचाई परियोजना रखा गया था, क्योंकि बांध सलौलीम नदी के पास बनाया गया था।
(फोटो साभार : indiatimes.com)
गोवा का मोहनजोदाड़ा है कुर्दी-

बांध बनने के बाद भी पानी कभी गांव तक नहीं पहुंच पाता था। गांव के डूबने के कारण मूल निवासियों को घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। कई लोग कुर्दी गांव को गोवा का मोहनजोदाड़ो कहते हैं।
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गांव वाले मनाते हैं उत्सव-

इस त्रासदी के बाद मई का महीना निवासियों के लिए यादगार है। क्योंकि यह उनके घर वापसी का समय होता है। इस महीने में सभी लोग जश्र मनाते हैं। जबकि ईसाई समुदाय एक वार्षिक चैपल मील के लिए एकत्रित होता है। हिंदू लोग इस महीने में मंदिर में दावत देते हैं। भले ही आज यह गांव खंडहर में बदल गया है, लेकिन यहां के रहने वाले लोगों के लिए आज भी यह उनका अपना गांव है। स्थानीय लोगों को अब भी लगता है कि यह उनका प्यार ही है, जो हर साल जादुई रूप से इस गांव को उनकी आंखों के सामने ले आता है।
(फोटो साभार : TOI.com)
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